राजस्थान में वन्यजीव एवं उनका संरक्षण– राज्य में वन का क्षेत्रफल देश में कई राज्यों की तुलना में कम होने के बावजूद राजस्थान वन्यजीवों की दृष्टि से देश में असम के बाद दूसरे स्थान पर है।
. राजस्थान सरकार के 1972 में भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम पारित करते हुए बिना अनुमति के शिकार को निषेध घोषित किया है।
. वर्तमान में राजस्थान में 5 राष्ट्रीय उद्यान 26 वन्यजीव अभ्यारण्य तथा 33 आखेट निषेध क्षेत्र घोषित किये जा चुके है।
. राजस्थान में बाघो को बचाने के लिए सुनीता नारायण की अध्यक्षता में एक कार्यदल का गठन किया गया था।
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राजस्थान में वन्यजीव एवं उनका संरक्षण – राजस्थान में राष्ट्रीय उद्यान
1. रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान-
. यह राज्य का प्रथम राष्ट्रीय उद्यान है।
. यह सवाई माधेपुर जिले में स्थित है।
. इसे 1 नवम्बर 1980 को राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया।
. यह लगभग 392 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला हुआ है।
. वर्तमान में इसका नाम राजीव गांध्ी राष्ट्रीय उद्यान कर दिया गया है।
. 1974 में इस उद्यान को बाघ परियोजना के अंतर्गत चयनित ा।
. इसमें राज्य की प्रथम ‘‘ बाघ बचाओं परियोजना ’’ चलाई जा रही है।
. यह देश की सबसे कम क्षेत्रफल की बाघ परियोजना है।
. इस उद्यान में त्रि-गणेशजी का मंदिर देशभर में प्रसिद्ध है।
. रणथम्भौर को शेरों की भूमि कहा जाता है।
. रणथम्भौर राष्ट्रीय पार्क में 6 झीलें हैं, ये- पदम तालाब, रामबाग, मलिक तालाब, मानसरोवर, लाहपुरा गिलाई सागर।
. रणथम्भौर के बाघ परियोजना क्षेत्र को रामगढ़ अभयारण्य (बूँदी) से जोड़ दिया गया है।
2. केवला देव (घना) राष्ट्रीय पक्षी उद्यान :-
. यह राज्य का दूसरा राष्ट्रीय उद्यान है।
. यह उद्यान भरतपुर जिले में गंभीरी व बाणगंगा नदियों के संगम पर स्थित है।
. 1956 में इसे अभयारण्य का दर्जा प्राप्त हुआ।
. 1981 में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया और यूनेस्कों द्वारा वर्ष 1985 में इसे विश्व प्राकृतिक ध्रोहर की सूची में शामिल किया गया।
. आगरा – जयपुर राजमार्ग नं. 11 पर भरतपुर से दो किमीदूर,
यह राष्ट्रीय पक्षी अभयारण्य रामसर कन्वेशन के अनुसार विश्व के नम भूमि क्षेत्रों में अंकित है।
. पानी के पक्षियों के लिए केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान एक अन्तर्राष्ट्रीय प्रसिद्ध प्राप्त पार्क है। पक्षियों के स्वर्ग के नाम से विख्यात यह पक्षियों की एशिया की सबसे बड़ी प्रजनन स्थली है।
. अभयारण्य का एक तिहाई हिस्सा पानी से भरा रहता है। पानी अजान बांध् से प्राप्त होता है।
. विदेशी पक्षी प्रजातियों में मुख्य आकर्षण दुर्लभ, साइबेरियाई क्रेन (सारस) है। इसके अलावा गीज, सपफेद मोर, पोचार्ड, लेपबिंग, बेगटेल एवं रोजी पेलीकन इत्यादि आते है।
. अभयारण्य स्थित पाईथन पोइन्ट पर अजगर देखे जा सकते हैं।
. झील के साथ-साथ भूमि पर भी कदम्ब और अकेशिया के पेड़ों के घने जंगल पक्षियों को आकर्षित करते हैं।
3. मुकुन्दरा हिल्स राष्ट्रीय उद्यान –
. राज्य का तीसरे राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा 9 जनवरी 2012 को दिया गया।
. कोटा तथा चित्तौड़गढ़ जिले में विस्तार है।
. यहां सांभर, नीलगाय, चीतल, हिरण ओर जंगली सूअर पाये जाते है। यह गागरोनी (हीरामन) तोतों के लिए प्रसिद्ध है।
. इस अभयारण्य बाडोली के मंदिर, अबली मीणी का महल स्थित है।
. मुकुन्दरा की पर्वत श्रृंखलाओं में आदिमानव के शैलाश्रय व उनके द्वारा बनाये गये शैलचित्र मिले हैं।
4. राष्ट्रीय मरूउद्यान जैसलमेर :-
. पश्चिमी राजस्थान के थार के मरूस्थल में 3162 वर्ग किलो.
क्षेत्र (1900 वर्ग किमी. जैसलमेर में और 1269 किमी बाड़मेर) में विस्तृत यह मरूउद्यान क्षेत्रफल की दृष्टि से राज्य में सबसे बड़ा अभ्यारण्य है।
. 8 मई, 1981 को राज्य सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया था।
. भारतीय वन जीव संरक्षण अध्नियम के अंतर्गत पूर्ण संरक्षण प्राप्त राज्य पक्षी गोडावण इस अभ्यारण्य का मुख्य आकर्षण है। गोंडावन अब केवल इस मरूउद्यान में ही पाया जाता है।
5. सरिस्का वन्यजीव अभ्यारण्य :-
. इसकी स्थापना 1955 में अलवर से 35 किमी दूर अरावली की पर्वत श्रृंखलाओं में की गई।
. यह अभ्यारण्य राजस्थान का दूसरा बाघ परियोजना क्षेत्र है। इसे 1979 बाघ रिजर्व क्षेत्र घोषित किया गया। यह 492 वर्ग किमी. क्षेत्र में विस्तृत है।
1982 में राज्य सरकार ने इसे राष्ट्रीय पार्क घोषित करने की अध्सिचना जारी की थी।
राजस्थान में वन्यजीव एवं उनका संरक्षण – राजस्थान के वन्य जीव अभ्यारण्य
रामगढ़ विषधरी अभयारण्य –
. बूँदी जिले के विंध्याचल पर्वत श्रृंखला की पहाड़ियों से निर्मित एक प्राकृतिक रूप से सुरक्षित यह अभयारण्य 307 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला हुआ है।
राष्ट्रीय चंबल घड़ियाल वन्यजीव अभयारण्य :-
. 1979 में राज्य सरकार द्वारा घोषित यह अभयारण्य कोटा, बूँदी, सवाई माधेपुर, धैलपुर तथा करौली में विस्तृत है।
. यह राजस्थान, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश में विस्तृत है।
. यह घड़ियालों के लिए प्रसिद्ध है।
जवाहर सागर अभ्यारण्य :-
. कोटा-बूँदी-चित्तौड़गढ़
शेरगढ़ वन्यजीव अभ्यारण्य :-
. बारां में स्थित इस वन क्षेत्र को 1981 में अभ्यारण्य घोषित किया गया। इसे मांपी की संरक्षण स्थली कहते है। परवन नदी इसमें से होकर गुजरती है।
भैंसरोड़गढ़ वन्यजीव अभ्यारण्य :-
. रावतभाटा (चित्तौड़गढ़)
बस्सी अभ्यारण्य –
. चित्तौड़गढ
कैलादेवी अभ्यारण्य –
. यह अभ्यारण्य करौली एवं सवाईमाधेपुर जिले में स्थित है।
कुम्भलगढ़ वन्य जीव अभ्यारण्य :-
. अरावली पर्वतश्रृंखला के दक्षिण भाग में उदयपुर, राजसमंद एवं पाली जिलों में फैले इस अभ्यारण्य को क्षेत्रफल लगभग 608.57 वर्ग किमी. है। इसकी घोषणा 13 जुलाई, 1971 को की गई।
. यह देश का एकमात्र अभ्यारण्य है, जहाँ विलुप्त होती हुई भेड़ियों की प्रजाति में प्रजनन कराया जाता है।
. अभ्यारण्य में चौसिंगा जिसे स्थानीय भाषा में घंटेल कहते है, पाया जाता है। विश्व प्रसिद्ध रणकपुर जैन मंदिर कुंभलगढ़ अभ्यारण्य में ही स्थित है।
सीतामाता वन्य जीव अभ्यारण्य :-
. 2 जनवरी, 1979 को इस अभ्यारण्य की स्थापना हुई।
अभ्यारण्य का कुल क्षेत्रफल 422.94 वर्ग किमी है। यह प्रतापगढ़ जिले की ध्रियावाद तहसील व चित्तौड़गढ़ की बड़ी सादड़ी तहसील में हैं।
. इस अभ्यारण्य में यूब्लेपफरिस नामक छिपकली पाई जाती है।
माउन्ट आबू अभ्यारण्य :-
. सिरोही जिले में स्थित वन क्षेत्र को 7 अप्रैल, 1960 को अभ्यारण्य घोषित किया गया।
. इस अभ्यारण्य में जंगली मुर्गे तथा डिकिल्पटेरा आबून्सिस नामक पादप जो विश्व में एकमात्र आबूपर्वत पर ही पाया जाता है, मिलते हैं।
जयसमंद वन्यजीव अभ्यारण्य :-
. इस अभ्यारण की स्थापना 1955 में उदयपुर से करीब 52 किमी. दक्षिण-पूर्व में जयसमंद झील क्षेत्र में वन्यजीव की सुरक्षा के लिए की गई।
. इसके आस-पास रूठी रानी के महल एवं हवामहल प्रमुख दर्शनीय स्थल है।
फुलवारी की नाल अभ्यारण्य :-
. यह अभ्यारण्य उदयपुर में 493 वर्ग किमी. में फैला हुआ है।
. यहाँ से मान्सी, वाकल व सोम नदी का उद्गम होता है।
इसकी स्थापना 1983 में हुई।
सज्जनगढ़ वन्यजीव अभ्यारण्य :-
. उदयपुर रियासत के एक पुराने आखेट स्थल के लगभग 5.19 वर्ग किमी वन क्षेत्र को सन् 1987 में अभ्यारण्य घोषित।
. यह राजस्थान का सबसे छोटा अभ्यारण्य है।
टाड़गढ़- रावली वन्यजीव अभ्यारण्य :-
. यह अभ्यारण्य पाली, अजमेर एवं राजसमंद जिले में स्थित है।
. इसमें बघेरा, रीछ, जरख, नीलगाय, गीदड़ आदि वन्यजीव पाये जाते है।
गजनेर पक्षी अभ्यारण्य :-
. बीकानेर, यह अभ्यारण्य बटबड़ पक्षी(इम्पीरियल सेन्डगाउज ) के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं। इस रेत का तीतर भी कहते है।
ताल-छापर अभ्यारण्य :-
. चूरू जिले में सुजानगढ़ के निकट छापर गांव के पास 8 वर्ग किमी. क्षेत्र में विस्तृत, स्थापना 1971 में की गई।
. यहाँ अभ्यारण्य काले हिरणों व प्रवासी पक्षी कुरजां का प्रजनन
स्थल है। वर्षा के मौसम में इस अभ्यारण्य में एक विशेष प्रकार की नर्म घास उत्पन्न होती है, जिसे मोचिया साइप्रस रोटन्डस कहते हैं।
रामसागर वन विहार अभ्यारण्य :-
. धैलपुर, स्थापना नवम्बर, 1955 में की गई।
बंध् बारेठा अभ्यारण्य :-
. भरतपुर जिले के बारेठा बंध् (झील) के चारों ओर फैला यह अभ्यारण्य केवला देव राष्ट्रीय उद्यान से करीब 50 किमी. दूरी पर है। यहां जरख पाये जाते है।
. इसकी स्थापना की घोषणा अक्टूबर, 1985 में की गई।
नाहरगढ़ जैविक अभ्यारण्य :-
. नाहरगढ़ के पहाड़ी क्षेत्र में आमेर, जयगढ़ पफोर्ट एवं नाहरगढ़ के बीच के क्षेत्र में 50 वर्ग किमी. क्षेत्र में यह अभ्यारण्य 1980 में स्थापित किया गया।
. इसमें राज्य का प्रथम जैविक उद्यान विकसित किया जा रहा है।
जमवारामगढ़ वन्य जीव अभ्यारण्य :-
. जयपुर जिले के जमवा रामगढ़ के समीप 300 वर्ग किमी. क्षेत्र में यह अभ्यारण्य विस्तृत है। इसकी स्थापना 31 मई, 1982 को की गई।
. जयपुर रियासत का पुराना शिकारगाह रहा है। इसमें चिंकारा नीलगाय, लंगूर, चीतल, मोर आदि वन्य जीव पाये जाते है।
सवाई मानसिंह वन्यजीव अभ्यारण्य :-
. 1984 में जयपुर रियासत के अंतिम महाराजा सवाई मानिंसंह के नाम पर रणथम्भौर राष्ट्रीय वन्यजीव अभ्यारण्य, सवाईमाधेपुर से सटे हुए क्षेत्र में स्थापित।
धवा (डोल) वन्यजीव अभ्यारण्य :-
. जोधपुर से 45 किमी. दूर जोधपुर -बाड़मेर सड़क मार्ग पर धवा गांव के समीप स्थित इस अभ्यारण्य में राजस्थान के सर्वाधिक कृष्ण मृग मिलते हैं।
. इस अभ्यारण्य में से छभ् 112 गुजरता है।
माचिया सपफारी पार्क :-
. सूर्य नगरी जोधपुर की पहाड़ियों के बीच कायलाना झील के किनारे यह वन्यजीव अभ्यारण्य नया विकसित किया गया है।
. यहां चिंकारा, काले हिरण, नीलगाय, आदि पाये जाते हैं। यह राजस्थान का मृगवन कहलाता है। यह देश का प्रथम राष्ट्रीय मरू वानस्पतिक उद्यान है।
राजस्थान के जंतुआलय
राज्य में वर्तमान में कुल पांच जंतुआलय है, जिनका विवरण निम्नानुसार हैं-
. जयपुर जंतुआलय –
यह राज्य का सबसे पुराना जंतुआलय है। इसकी स्थापना 1876 में रामनिवास बाग में की गई।
. उदयपुर जंतुआलय – इसकी स्थापना 1878 में उदयपुर नगर में गुलाब बाग में की गई।
. बीकानेर जंतुआलय
. जोधपुर जंतुआलय की स्थापना जोधपुर के सार्वजनिक उद्यान में 1936 में की गई। यह अपनी पक्षी शाला के लिये विख्यात है। इस जंतुआलय में गोडावन पक्षियों का कृत्रिम प्रजनन केन्द्र स्थापित किया गया है।
. कोटा जंतुआलय –
इसकी स्थापना 1954 में की गई। इसमें कोटा, झालावाड़, बूँदी एवं बारां जिलों में मिलने वाले पक्षियों को रखा जाता है।
राज्य के मृगवन
क्रसं नाम संबंध्ति जिला स्थापना
1 चित्तौड़गढ़ दुर्ग मृगवन चित्तौड़गढ़ 1969
2 सज्जनगढ़ मृगवन उदयपुर 1984
3 माचिया सपफारी पार्क,कायलाना जोधपुर 1985
4 संजय उद्यान, शाहपुरा जयपुर 1986
5 पुष्कर मृगवन, पंचकुण्ड अजमेर 1985
6 अशोक विहार मृगवन जयपुर 1986
7 अमृता देवी मृगवन जोधनपुर
विशेष बिंदु
. राज्य में सर्वाधिक अभ्यारण्य उदयपुर जिले में है।
. राजस्थान वन्यजीव बोर्ड की स्थापना 1955 में की गई।
. राज्य में बांध् शिकार पर प्रतिबंध् 1970 में लगाया गया।
. संपूर्ण राज्य में शिकार पर प्रतिबंध् 1986 में लगाया गया।
. भारत में बांध् परियोजना के सूत्रधर कैलाश सांखला जोधपुर के रहने वाले थे।
. कैलाश सांखला ने ‘टाईगर’ और ‘रिटर्न ऑफ टाईगर’ मैन ऑफ इंडिया) कहा जाता है। यह टाइगर परियोजना के प्रथम निदेशक थे।
. भारत में बाघों की संख्या सुनिश्चित करने के लिए 1 अप्रैल, 1973 को प्रोजेक्ट टाइगर नामक योजना चलाई गयी।
. ओरण वन्य पशुओं की शरण स्थली को कहा जाता है।
. उत्तर भारत का प्रथम सर्प उद्यान कोटा में स्थापित किया गया है।
. केवल सांखलिया (अजमेर) तथा सोरसन (बारां) ही दो ऐसे आखेट निषेध क्षेत्र हैं जहाँ पर राष्ट्रीय मरू उद्यान के अतिरिक्त राजस्थान का राज्य पक्षी गोडावन पाया जाता है।
. रखत, कांकन, डांग आदि वनों के संरक्षण से संबंध्ति शब्द है काकड़ गांव की सीमा पर स्थितवन कहो कहा जाता है।
. रणथम्भौर राष्ट्रीय पार्क की मछली नामक बाघिन को सज्जनता के लिए लाइपफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड दिया गया है।
आखेट निषेध क्षेत्र
क्र. नाम जिला क्र. नाम जिला
1 संथाल सागर जयपुर 2 महलां जयपुर
3 महलां जयपुर 4 जरोदा नागौर
5 रोतू नागौर 6 धेरीमन्ना बाड़मेर
7 जवाई बांध् पाली 8 सोरसन बारां
9 रानीपुरा टोंक 10 कनक सागर बँदी
11 रामदेवरा जैसलमेर 12 उज्जला जैसलमेर
13 सांचौर जालौर 14 मैनाल चित्तौड़गढ़
15 संवतसर-कोटसर चूरू 16 लोहावट जोधपुर
17 डोली जोधपुर 18 गुढ़ा विश्नोई जोधपुर
19 फीटकाशनी जोधपुर 20 ढेंचू जोधपुर
21 खेजड़ली जोधपुर 22 जम्मेश्वरजी जोधपुर
23 साथीन जोधपुर 24 जोड़ाबीड़ बीकानेर
25 दीयाना बीकानेर 26 देशनोक बीकानेर
27 मुकाम बीकानेर 28 बज्जू बीकानेर
29 बर्डोद अलवर 30 जौड़िया अलवर
31 साँखलिया अजमेर 32 गंगवान अजमेर
33 तिलोरा अजमेर
राज्य में वर्तमान में 33 आखेट/शिकार निषिध् क्षेत्र है जिनका कुल क्षेत्रफल 26,719.94 वर्ग किमी. है।
. संवतसर – कोटसर (चूरू) राज्य का सर्वाधिक क्षेत्रफल वाला आखेट निषिध् क्षेत्र है।
. जोधपुर में सर्वाधिक 7 आखेट निषिध् क्षेत्र है। यहाँ स्थित जाम्मेश्वर राज्य का दूसरा सबसे बड़ा आखेट निषिध् क्षेत्र है
बीकानेर में 5 व अजमेर में 3 आखेट निषिध् क्षेत्र है।
. संथालसागर (जयपुर) राज्य का सबसे छोटा आखेट निषिध् क्षेत्र है।
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