राजस्थान में मृत्यु रीति रिवाज
बैकुण्डी-बांस या लकड़ी की तैयार अर्थी ।
– बखेर या उछाल-बैकुण्डी के ऊपर राह में पैसे बिखेरना।
– दण्डोत-मृतक व्यक्ति के निकट संबंध्यिं द्वारा साष्टांग दण्डवत करना।
– आधेठा-अर्थी की दिशा को बदलना।
कंधिया-बैकुण्डी को ले जाने वाले चार व्यक्ति।
– अत्येंष्ठि-ज्येष्ठ पुत्रा द्वारा तीन परिक्रमा करके
– भदर-शोक स्वरूप बाल, दाड़ी, मूछे कटवाना।
– राजस्थान में मृत्यु रीति रिवाज – सातरवाड़ा/पालीवाड़ा-दाह संस्कार सम्पन्न कर सम्मिलित जन संबंध्ति मृतक के परिवार को हिम्मत, हौसला व सहानुभूति प्रदान करते है, प्रक्रिया को सातरवाड़ा।
– तीया-तीसरे दिन शमशान में जल से भरा घड़ा तथा पके हुये चावल रखे जाते है।
– फूल एकत्रा करना-तीसरे दिन मृतक के परिवारजन शमशान में जाकर मृतक की दाड़, दांत, हड्डियां चुन कर उन्हे लाल वस्त्र में बंधकर पवित्र गंगा में विसर्जन हेतु ले जाते है।
–मौसर-मृत्यु भोज
– चौखला-रियासत काल में कुछ गांवों का समुह, मृत्यभोज के अवसर पर इनकों जीमण।
– जौसर-जीवित मृत्यभोज।
– रंग बदलना-12 वें दिन उतराधिकारी के ससुराल वालें गुलाबी रंग के साफे लाते है। जो सफेद की जगह बंधवाते
– पगड़ी का दस्तूर-मृतक के सबसे बड़े पुत्र को उतराधिकारी।
– महीने का घड़ा-मृत्यु के एक माह पश्चात् यज्ञ व दान।
श्राद्ध -भादपद पूर्णिमा से आश्विन अमावस्या तक।
– ओख-जब किसी परिवार में त्यौहार के दिन मृत्यु होने पर पीढी उस त्यौंहार को नहीं मनाते है।