हवामहल
जयपुर
1799 ईमहाराजा प्रताप सिंह द्वारा निर्मित।
वास्तुकार लाल चंद उस्ता। पांच मंजिला। 953 खिड़कियां।
आकृति कृष्ण के मुकुट के समान भारतीय-पफारसी शैली पर आधारित।
1999 में द्वितीय शताब्दी वर्ष मनाया गया है।
चन्द्र महल (सिटी पैलेस)
जयपुर
सवाई जयसिंह द्वारा निर्मित।
जयपुर राज परिवार का निवास स्थान।
शिल्पी विधध्र भट्टाचार्य।
सात मंजिला।
जल महल
जयुपर।
मानसागर झील में।
अश्वमेध् यज्ञ में आमंत्रित ब्राहृणों को भोजन इसी महल में करवाया।
सवाई जयसिंह द्वारा निर्मित।
सिसौदिया रानी महल
जयपुर।
सवाई जयसिंह द्वारा निर्मित (1730 ई.)
सर्वतोभद्र महल
सिटी पैलेस परिसर में स्थित इसे दिवाने खास कहते। है। इसे सामान्य जन सरबता महल कहते थे।
सवाई जय सिंह द्वारा निर्मित।
बादल महल
जयपुर।
निर्माण सवाई जयसिंह द्वारा।
तीज और गणगौर के मेलों के अवसर पर जयपुर नरेश इसमें दरबार आयोजित करते हैं।
मुबारक महल
जयपुर।
निर्माण माधेसिंह ।। (1900-1908)।
रियासत में आने वाले अतिथियों को ठहराने हेतु।
मुगल, यूरोपीय, राजपूत शैली में।
वर्तमान में इसमें वस्त्रालय संचालित किया जा रहा है।
आमेर महल
जयपुर (आमेर)।
निर्माण मानसिंह प्रथम द्वारा।
हिन्दु व मुस्लिम शैली में।
बिशप हैबर ‘‘ मैने क्रेमलीन में जो कुछ देखा है और अल ब्रहृ के बारे में जो कुछ सुना है उससे भी बढ़कर ये महल है।’’
शीश महल
आमेर (जयपुर)।
निर्माण प्रारम्भ मानसिंह प्रथम द्वारा। सवाई जयसिंह ने इसे पूर्ण करवाया।
इसे महाकवि बिहारी ने दर्पण धम’’ कहा।
सामोद महल
जयपुर।
राजा बिहारी दास ने (1645-1652) बनवाया।
भित्ति चित्रों में धर्मिक जीवन के अलावा साहित्यिक एवं सामाजिक जीवन की झाँकी।
राजस्थान में यहाँ पिफल्मों की सर्वाधिक शुटिंग।
प्रीतम निवास
जयपुर।
चन्द्र महल में (सिटी पैलेस)।
माधेनिवास
जयपुर।
निर्माण माधेसिंह प्रथम ने।
बादल महल
जैसलमेर।
निर्माण 1818ईसिलावटों द्वारा।
ताजिया टॉवर।
सिलावटों ने इसे महारावल वैरिशाल सिंह को भेंट।
पॉंच मंजिला।
सर्वोत्तम विलास महल
जैसलमेर
महारावल अखैसिंह द्वारा निर्मित
राज विसाल महल
जैसलमेर।
जवाहर विलास महल
जैसलमेर।
जैसलमेर रियासत का प्रथम होटल।
ईसाल बंगले के नाम से प्रसिद्ध।
धैड़ का यशोदा देवी पट्ट
भीलवाड़ा।
यह शिवालय रूठी रानी का महल कहलाता।
राजमहल (गढ़ पैलेस)
बूँदी।
बूँदी राजपरिवार का निवास स्थान।
17 वीं शताब्दी के पूर्वार्ध् में निर्मित।
कर्नल टॉड़ ‘‘समस्त रजवाड़ों में सर्वश्रेष्ठ’’।
रूपयार्ड किपलिंग ‘‘ मानव द्वारा नहीं पफरिश्तों द्वारा निर्मित’’।
इसमें हजारी दरवाजा, हाथी पोल, रतन निवास, नौबाण, रतन दौलत, रतन, महल, रतन मण्डप।
इसका निर्माण 1773 ईमें विष्णु सिंह ने।
रंग-विलास महल
निर्माण उम्मेदसिंह द्वारा चित्राशाला के रूप में करवाया गया।
भित्ति चित्राण हेतु प्रसिद्ध ।
अनिरुद्ध महल
बूँदी।
निर्माण 1676 ईमें करवाया गया बाद में इसे ‘जनाना महल’ बना दिया।
एक थम्बिया महल
डूंगरपुर।
गैब सागर के तट पर।
वाराड़ की उत्कृष्टता वास्तुकला का नमूना।
निर्माण शिवसिंह (1730-85) द्वारा अपनी राजमहिषी ज्ञानकुंवर की स्मृति में शिव ज्ञानेश्वर शिवालय के रूप मे
उदय विलास महल
डुंगरपुर।
गैबसागर।
महारावल उदयसिंह द्वारा निर्मित।
राजपरिवार का निवास स्थान।
बादल महल
डुंगरपुर।
गैबसागर तट पर।
महारावल वीरसिंह ने इसका निर्माण करवाया।
उम्मेद भवन
जोधपुर।
महाराजा द्वारा निर्मित अकाल राहत कार्यां के तहत (1928-40)।
घड़ियों का संग्रहालय।
छीतर पैलेस
इसमें 347 कमरें। वास्तुविद हेनरी लैकेस्टर।
इटेलिक तथा गैध्कि शैली में।
एशिया का नवीनतम राजप्रसाद।
अजीत भवन
जोधपुर।
देश का पहला हैरिटेज होटल।
बीजोलाइ के महल
जोधपुर।
कायलाना झील की पहाड़ियों के बीच।
महाराजा तखतसिंह द्वारा निर्मित।
विजय मंदिर पैलेस
अलवर।
महाराजा जयसिंह द्वारा 1918 में निर्मित।
इसमें सीताराम का मंदिर बना।
सिलीसेठ महल
अलवर।
महाराजा विनयसिंह ने रानी शीला के लिए बनवाया।
सरिस्का पैलेस (महल)
अलवर।
निर्माण जयसिंह ने 1902 ईमें ‘डंयुक ऑपफ एडिनबर्ग’ की यात्रा में ठहरने हेतु करवाया।
हवा बंगला
अलवर।
इसका निर्माण बख्तार सिंह व विनय सिंह के शासन काल में तिजारा की पहाड़ी पर करवाया गया।
लालगढ़ महल
बीकानेर।
निर्माण गंगा सिंह ने अपने पिता लालसिंह की स्मृति में।
लाल पत्थर से निर्मित।
इसमें अनूप ‘संस्कृति लाइब्ररी’ व सार्दुल संग्रहालय’।
गजनेर महल
बीकानेर।
निर्माण महाराजा गजसिंह ने निर्माण अकाल राहत कार्यों के तहत।
जग मंदिर
कोटा।
किशोर सागर तालाब के बीच। महाराव दुर्जन शाल की हाड़ी रानी बृजकंवर ने 1739 ईमें निर्मित।
उदयपुर के लेक पैलेस की तर्ज पर
अभेड़ा महल
कोटा।
चम्बल नदी के किनारे।
गुलाब महल
कोटा।
राव जैलसिंह हाड़ा द्वारा निर्मित।
अबली मीणी का महल
कोटा।
महाराव मुकुन्दसिंह द्वारा अपनी पासवान हेतु (1684-1685)।
मुकुन्दर हिल्स के शिखर पर। दर्रा वन्य जीव अभ्यारण्य में।
राज महल (सिटी पैलेस)
उदयपुर।
पिछोला झील के किनारे।
निर्माण महाराणा उदयसिंह ने।
पफर्ग्युसन ने इसे ‘विण्ड़सर महलों की संज्ञा दी’’।
इसमें कृष्ण विलास महल, राज आंगन, मोती महल, मानक
महल, दिल खुश महल।
जगमंदिर
उदयपुर।
पिछोला झील में।
महाराणा जगतसिंह प्रथम द्वारा 1651 में निर्मित।
महाराणा कर्णसिंह ने निर्माण कार्य प्रारम्भ किया।
शाहजहॉं इसी महल में ठहरे।
जग निवास महल
उदयपुर।
पिछोला झील में।
महाराणा जगतसिंह प्प् द्वारा 1746 मे निर्मित।
सज्जन गढ़ पैलेस
उदयपुर महल एवं उद्यान का निर्माण महाराणा सज्जन सिंह द्वारा।
गुलाब बाँसदरा पहाड़ी पर।
इसे वाणी विलास महल कहते है।
इसमें दयानन्द सरस्वती ने सत्यार्थ प्रकाश ग्रन्थ की रचना।
(सन् 1874 ई.) की।
राजकुमार के महल
उदयपुर
मोती महल
उदयपुर
एक थम्भा महल
मंडोर (जोधपुर)।
महाराजा अजीत सिंह के शासन काल में।
लाल व बलुआ पत्थर निर्मित तीन मंजिला।
प्रहरी मीनार के नाम से प्रसिद्ध ।
बुलानी महल
जोधपुर।
यह वर्तमान में उम्मेद अस्पताल है।
मोती महल
जोधपुर।
महाराजा सुरसिंह द्वारा निर्मित।
फुल महल
जोधपुर।
महाराजा अभयसिंह द्वारा निर्मित।
खेतड़ी महल
झुंझुनू (1735-71)
खेतड़ी महाराजा भोपाल सिंह द्वारा अपने ग्रीष्म कालीन विश्राम हेतु झुंझुनू शहर में।
खिड़िकियों व झरोखों हेतु प्रसिद्ध इसमें लखनऊ जैसी भुल भुलैया तथा जयपुर के हवामहल की झलक।
शेखावटी का हवामहल।
हरसुख विलास
करौली।
महाराजा हरवक्ष पाल द्वारा निर्मित इसमें सपफेद चंदन से महकता उधन।
हवा महल
कोटा।
महाराव रामसिंह II द्वारा निर्मित
केशर विलास
सिरोही।
निर्माण 20 वीं शताब्दी महाराव केसरी सिंह द्वारा।
वर्तमान सिरोही का राज परिवार इसमें रहता।
स्वरूप निवास
सिरोही
सुनहरी कोठी
टोंक।
निर्माण 1824 ईनवाब व जीउद्दौला ने।
रत्न, कांच तथा मीनाकारी हेतु प्रसिद्ध ।
मुबारक महल
टोंक।
इस्लामिक शैली में निर्मित।
सम्पूर्ण भारत में यहां बकरा ईद के समय ऊँट की बलि।
फूल महल
बाँसवाड़ा।
महारावल जगमाल द्वारा निर्मित।
सावन भादो महल
बाँरा।
सावन भादो झील
सिरोही
सावन भादो कड़ाई
देशनोक
राजस्थान की प्रसिद्ध हवेलियाँ
नथमल की हवेली – जैसलमेर।
सालिम सिंह की हवेली
जैसलमेर की सबसे ऊँची इमारत।
जैसलमेर के प्रधनमंत्रा सालिमसिंह द्वारा (1841-1881) में निर्मित।
यह हवेली अपनी पत्थर की नक्काशी व महीन जालियों के लिए प्रसिद्ध ।
ऊपरी मंजिल को मोती महल एवं जहाज महल कहते है।
पटवों की हवेली
जैसलमेर, हिन्दू, मुगल एवं यहूदी स्थापत्य कला का संगम।
बागौर की हवेली
उदयपुर मे इसका निर्माण मेवाड़ के प्रधनमंत्रा श्री अमरचंद बड़वा द्वारा 1751-1778 के बीच कराया गया।
वर्तमान मे पश्चिमी क्षेत्रा सांस्कृतिक केन्द्र का अधिकार।
इसमें 138 कमरे है।
बच्छावतों की हवेली
बीकानेर।
निर्माण -1593 ईकर्णसिंह बच्छावत द्वारा।
मुगल, किशनगढ़, यूरोपीय चित्रा शैली का प्रयोग किया गया।
रामपुरिया हवेली
बीकानेर।
हिन्दू, मूगल एंव यूरोपीय कला का समन्वय।
इसके निर्माण का उद्देश्य लोगों को रोजगार व शिल्पकारों को
संरक्षण प्रदान करना।
राखी हवेली-जोधपुर।
पौद्दार की हवेली-नवलगढ़ (झुंझुनूं)।
भक्तों की हवेली
झुंझुनूं।
सौ से अधिक खिड़कियां।
नाथूराम पौद्दार की हवेली -बिसाऊ (झुंझुनूं)।
सोने-चांदी की हवेली :-महनसर (झुंझुनूं)।
सुराणा हवेली
चुरू।
1100 दरवाजें एवं खिड़कियां, 6 मंजिला ।
चुरू का हवामहल।
रामविलास गोयनका की हवेली-चुरू।
झाला की हवेली-कोटा।
बड़े देवता की हवेली-कोटा।
केसरीसिंह बारहठ की हवेली-शाहपुरा (भीलवाड़ा)।
भामाशाह हवेली-चित्तौड़।
मालमजी का कमरा– चुरू।
स्मारक/समाध्यिँ/छत्तरियाँ
मरणोपरान्त स्मृति चिन्ह बनाने की परम्परा प्राचीन रही है। देश पर प्राण न्यौछावर करने वालों की स्मृतियों में उनकी समाध्यिॉ एवं सती एवं जौहर करने वाली स्त्रियों की उस स्थान पर छतरियाँ
बनी जिन्हें देवलियाँ या देवल कहा जाता था।
स्थापत्य कला की दृष्टि से इन स्मारकों का बहुत महत्व है।
राजाओं की छतरियों मे जहाँ अधिक तर पगले (पैर) बने है। तो शैवों, नाथों की छतरियों में खडाऊ, शिवलिंग या नंदी प्रतीक रूप में बने है। इस दृष्टि से जोधपुर के महामन्दिर की छतरी विशेष
उल्लेखनीय है। गैटोर (जयपुर), जसवंत थड़ा (जोधपुर), छत्राविलास बाग (कोटा), बड़ा बाग (जैसलमेर) इस दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। अनेक स्तम्भों पर टिके गोल गुम्बद, राजपूती मेहराबदार छतरियॉ, मूर्तिकला और बेलबूटों से सुसज्जित स्थापत्य देखते ही बनता है।
राजस्थान के प्रमुख स्मारक-
मूसीरानी की छतरी
अलवर।
महारानी मूसी तथा बख्तावरसिंह की स्मृति में निर्माण किया गया।
1815 ईमहाराजा विनयसिंह द्वारा निर्मित राजपूत हिन्दू स्थापत्य कला की अनुपम धरोहर।
80 खंभों की छतरी
84 खंभों की छतरी
बूंदी
निर्माण राव राजा अनिरू( सिंह के द्वारा धभाई देवा की स्मृति में (देवा राव राजा अनिरू( सिंह का धभाई था)
तीन मंजिला।
1683 ईमें निर्माण।
केशर बाग की छतरियाँ
बूंदी।
बूंदी नरेशों तथा राजपरिवार के सदस्यों की 66 छतरियां
देवी कुण्ड की छतरियाँ
बीकानेर।
बीकानेर राजाओं की छतरियां।
यहां राव कल्याणमल से महाराजा डुंगरसिंह तथा राजाओं रानियांं तथा राजकुमारों की छतरियां बनी।
मूरली छतरी
बारां (मांगरोल)
इस छतरी से ज्ञात होता है कि कोटा के महाराव किशोरसिंह द्वितीय से जुझते हुए 1 अक्टूबर 1821 को अग्रेंजी सेना के सेनानायक कर्नल क्लार्क व रीड शहीद।
इस छतरी को राष्ट्रीय स्मारक होने का गौरव प्राप्त।
जगन्नाथ कच्छवाह की छतरी
माण्डल (भीलवाडा़)।
32 खम्भों की छतरी का निर्माण बादशाह जहांगीर द्वारा।
बनजारों की छतरी
लालसोट (दौसा)
ईश्वरी सिंह की छतरी
जयपुर (सिटी पैलेस में)
निर्माण-माधेसिंह द्वितीय ने।
गेटोर की छतरियां
जयपुर।
महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय से लेकर मानसिंह द्वितीय तक के राजाओं व उनके पुत्रों की स्मृति में।
पंचायतन शेली में।
सबसे भव्य छतरी सवाई जयसिंह द्वितीय की।
सबसे बाद की छतरी मानसिंह द्वितीय की।
पंचकुण्डा की छतरियां
जोधपुर।
जोधपुर के रानियों की छतरियां।
ये छतरियां स्थापत्य एवं शिल्प कला के लिए प्रसिद्ध यहां
कुल 42 छतरियां।
इसमें सबसे भव्य 32 स्तम्भों वाली रानी सूर्यकंवरी की छतरी
(महाराजा मानसिंह की पत्नी) सूर्यकंवरी जयपुर नरेश
प्रतापसिंह की पुत्रा, मृत्यु 1825 ई।
कागा की छतरियां
जोधपुर।
कागा नाम से अत्यन्त प्राचीन तीर्थ स्थल।
ऋषि श्रेष्ठ ‘कांग भुशुण्डि’ ने यहां तपस्या की।
जोधपुर राजपरिवार के सदस्यों का अंतिम संस्कार यहां।
गोरा धाय की छतरी
जोधपुर।
जोधपुर नरेश अजीतसिंह की धाय मां।
पति मनोहर गोपी गहलोत की 18 मई, 1704 को मृत्यु गोरा धाय सती।
छः खम्भों की छतरी।
क्षार बाग की छतरियां
कोटा।
कोटा राज्य के शासकों का दाह संस्कार।
गोपालसिंह की छतरी
करौली।
1757 ईमें महाराजा गोपालसिंह द्वारा जब मथुरा में मुसलमानों द्वारा देव मूर्तियां खण्डित किये जाने का समाचार सूना तो वहां पहुंचे तथा लड़ते हुए शहीद।
अमरसिंह राठौड़ की छतरी
नागौर।
16 खम्भों की छतरी।
आहड़ की छतरियां
गंगो गांव (आहड़, उदयपुर)
प्रथम छतरी महाराणा अमरसिंह।
अमरसिंह के बाद समस्त महाराणाओं की छतरियां यहां बनी।
‘महासतियों का टीला’ के उपनाम से विख्यात।
बड़ा बाग की छतरियां
जैसलमेर।
आँतेड़ की छतरियां
अजमेर।
निर्माण- विक्रम संवत् 1489 ई.।
हौलेण्ड की चित्राकार मैरियम बर्गर ने इन छतरियों के भित्ति चित्रण का उल्लेख किया।
सूरज छतरी
बूंदी।
निर्माण-छत्रासाल की रानी श्याम कुमारी (सुरज कंवर) द्वारा।
बदनौर की छतरी
भीलवाड़ा।
यह रावजोध की छतरी (राव जोध् सिंह )
जयसिंह की छतरी
रणथम्भौर (सवाई माधेपुर)
निर्माण हम्मीद देव चौहान ने अपने पिता जयसिंह (जैत्रासिंह) के 32 वर्षों के शासन काल की स्मृति में।
2 खम्भों की छतरी भी कहते है।
इसे न्याय छतरी भी कहते है।
अमरगढ़ की छतरिया
भीलवाड़ा।
जसवंत थड़ा की छतरी
जोधपुर।
महाराजा जसंवत सिंह द्वितीय की छतरी।
निर्माण-महाराजा सरदारसिंह द्वारा 1906 ईसपफेद संगमरमर
से।
राजस्थान का ताजमहल।
सिंधिया अप्पाजी की छतरी
नागौर।
झाला मन्ना की छतरी
हल्दीघाटी (राजसंमद)।
दीपकुंवरी की छतरी
बीकानेर।
पत्नी श्री मोतीसिंह पुत्रा श्री महाराजा सूरतसिंह।
बीकानेर रियासत में अन्तिम सती होने वाली रानी।
राव गांगा की छतरी
पंचकुण्डा (जोधपुर)
पंचकुण्डा की सबसे प्राचीन छतरी।
चेतक की छतरी
हल्दी घाटी (राजसंमद)
कुत्ते की छतरी (कूकूराज की घाटी)
सवाई माधेपुर।
अकबर की छतरी
बयाना (भरतपुर)।
पीर कपूर बाबा पफकीर की छतरी
शाहजहां ने जगमंदिर में बनाई।
गंगा बाई की छतरी
भीलवाड़ा।
जोगीदास की छतरी-उदयपुरवाटी (झुंझुनूं)।
1 दुर्गादास की छतरी – शिप्रा नदी के किनारे उज्जैन
स्थित।
2 मामा भानजे की छतरी।– जोधपुर स्थित ध्न्ना भीया की छतरी।
3 रैदास की छतरी – चित्तौड़गढ़ दुर्ग स्थित संत रैदास की छतरी।
4 संत पीपा की छतरी – गागरोन दुर्ग के पास संत पीपा (प्रतापराव) की छतरी।
5 गड़रा शहीद स्मारक – 1945 के भारत-पाक युद्ध मे रेलवे कर्मचारियों की बाड़मेर स्थित स्मारक।