राजस्थान में प्रजामण्डल आंदोलन


जिस समय अखिल भारतीय स्तर पर राजनीतिक चेतना फैल रही थी, राजस्थान भी इससे अछूता नहीं रहा। यहाँ विभिन्न  संस्थायें जैसे राजस्थान सेवा संघ व राजस्थान मध्य भारत सभा देशी रियासतों मे राजनीतिक चेतना जागृत करने में सपफल रही। यही नही ब्रिटिश प्रान्त के कांग्रेसी कार्यकताओं से भी राजस्थान के स्वतंत्रता प्रेमी निरंतर सम्पर्क मे रहे।

राजस्थान मे चल रहे स्वतंत्रता आंदोलन को तीन भागां में  बांटा जा सकता है . 1927 इ. से पूर्व  अखिल भारतीय स्तर पर हो  रही राजनीतिक हलचल से राजस्थान प्रभावित था। प्रथम विश्व युद्ध से लौटे सैनिकों का विवरण, रोलेट एक्ट, 1920 का असहयोग आंदोलन जैसी घटनाओं ने निश्चित रूप चेतना जागृत की। यद्यपि सभी रियासतो की स्थितियाँ व समस्यायें समान ही थी, फिर भी एकीकृत संगठन के अभाव मे कोई व्यवस्थित आंदोलन का श्रीगणेश नही हो पाया। कांग्रेस पार्टी ने भी देशी राज्यों के मामलों मे अहस्तक्षेप की नीति घोषित कर यहाँ की राष्ट्रवादी गतिविध्यिं खादी का प्रयोग प्रचार एवं सामाजिक सुधरों तक ही सीमित कर दी।

1927 ई. मे अखिल भारतीय देशी राज्य लोक परिषद की स्थापना के साथ ही सक्रिय राजनीति का काल आरंभ हुआ। कांग्रेस का समर्थन मिल जाने के बाद इसकी शाखायें स्थापित की जाने लगी। 1931 ई. में रामनारायण चौध्री ने अजमेर मे देशी राज्य लोक परिषद का प्रथम प्रान्तीय अध्विशन आयोजित किया।

1938 ई. मे कंग्रेस के हरिपुरा अध्विशन में कांग्रेस ने एक प्रस्ताव पारित कर देशी रियासतों के लोगों द्वारा संचालित स्वतंत्रता संघर्ष को समर्थन दिया। कांग्रेस के इस प्रस्ताव से देशी रियासतों में चल रहे स्वतंत्रता संग्राम को नैतिक समर्थन मिला। इन राज्यों मे चल रहे

आंदोलन प्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस से जुड़ गये और राजनीतिक चेतना का विस्तार हुआ। प्रजामंडलों की स्थापना हुई, जिसने देशी शासकों के अधीन उत्तरदायी प्रशासन की मांग की। विभिन्न  देशी रियासतों मे प्रजामंडल आंदोलन की भूमिका इस प्रकार रही-

जयपुर प्रजामण्डल

राजस्थान में प्रजामण्डल की स्थापना सर्वप्रथम 1931 ई. में श्री कपूरचन्द पाटनी द्वारा जयपुर में की गई।

1938 ई. में जयपुर प्रजामण्डल का प्रथम अध्विशन जयपुर में सेठ जमनालाल बजाज की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ।

जयपुर राज्य में चिरंजीलाल अग्रवाल के नेतृत्व में प्रजामण्डल प्रगति दल नामक संस्था की स्थापना हुई ।

जेन्टलमेन्स एग्रीमेंट– जयपुर प्रजामण्डल के अध्यक्ष श्री हीरालाल शास्त्रा और रियासत के प्रधनमंत्र सर मिर्जा इस्माइल के बीच 1942 ई. में एक समझौता हुआ।

डूँगरपुर प्रजामण्डल

भोगीलाल पाण्ड्या की अध्यक्षता में ही 1944 में डूँगरपुर प्रजामण्डल की स्थापना हुई।

भोगीलाल पाण्ड्या और गौरी शंकर उपाध्याय ने डूँगरपूर राज्य में शिक्षा प्रसार की दृष्टि से बागड़ सेवा मंदिर की स्थापना की।

शोभालाल गुप्ता ने सागवाड़ा में हरिजन आश्रय तथा माणिक्यलाल वर्मा ने सागवाड़ा में खडलाई आश्रम की स्थापना की।

पूनावाड़ा काण्ड– सेवा संघ द्वारा संचालित पाठशालाओं को बंद कराने की नीति के तहत मई, 1947 ई. में पूनावाड़ा गांव में संचालित पाठशाला को ध्वस्त कर अध्यापक शिवराम भील को पीटा। यह काण्ड पूनावाड़ा काण्ड कहा जाता है।

रास्तापाल काण्ड– रास्तापाल गांव में सेवा संघ द्वारा संचालित पाठशाला डॅूंगरपूर रियासत द्वारा बंद करने का विरोध् करने पर नाना भाई खांट व 13 वर्षीय बालिका कालीबाई, जून, 1947 में अध्यापक सेंगाभाई को बचाने के लिए शहीद हो गए।

मेवाड़ प्रजामण्डल

मेवाड़ में संगठित राजनीतिक आंदोलन का प्रारम्भ महाराणा भूपालसिंह के समय 1930 ई. में हुआ।

राजस्थान में विशुद्ध राजनीतिक संगठन के रूप में पहली बार 24 अप्रैल 1938 को माणिक्यलाल वर्मा निर्वाचित हुए।

31 दिसम्बर 1945 व 1 जनवरी 1946 को पं. जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में उदयपुर में अखिल भारतीय राज्य लोक परिषद का अध्विशन सम्पन्न हुआ।

जोधपुर (मारवाड़) प्रजामण्डल

मारवाड़ (जोधपुर ) में जन जागृति का प्रारम्भ 1920 ई. में तौल आंदोलन से माना जाता है, इस आंदोलन के प्रमुख सूत्रधर चांदमल सुराणा थे।

मारवाड़ सेवा संघ की स्थापना 1920 ई. में जयनारायण व्यास, भंवरलाल सर्राफ, आनंद लाल सुराणा ने भंवरलाल सर्राफ की अध्यक्षता में की।

मारवाड़ हितकारिणी सभा की स्थापना 1924 ई. में चांदमल सुराणा द्वारा की गई और इसी के साथ मारवाड़ में जनजागृति का प्रारम्भ हुआ।

1931 ई. में जयनारायण व्यास ने मारवाड़ यूथ लीग की स्थापना की।

1934 में मारवाड़ प्रजामण्डल की स्थापना हुई।

1938 ई. में सुभाषचन्द्र बोस की जोध्पुर यात्र के समय मारवाड़ लोक परिषद का गठन कर इसका नेतृत्व

जयनारायण व्यास को सौंपा गया।

जयनारायण व्यास ने ‘उतरदायी शासन के लिए संघर्ष’ नामक गुप्त संगठन का गठन किया।

बीकानेर प्रजामण्डल

अक्टूबर 1936 ई. में मघाराम वैद्य द्वारा बीकानेर प्रजामण्डल की स्थापना की गई।

बीकानेर षडयंत्र केस- 1931 ई. में जब महाराजा गंगासिंह लंदन गए तो चंदनमल बहड़ व उनके साथियों ने ‘बीकानेर एक दिग्गदर्शन’ नाम से पर्चे वितरित कराए, जिसमें बीकानेर की वास्तविक स्थिति का चित्रण था। इससे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर महाराजा का अपमान हुआ। लौटने पर बहड़ सत्यनारायण, गोपाल स्वामी आदि पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया। जिसे बीकानेर षडयंत्र केस कहते है।

1932 ई में बीकानेर राज्य में सार्वजनिक सुरक्षा कानून पास किया गया जिसे बीकानेर का काला कानून की भी संज्ञा दी जाती है।

बीकानेर षडयंत्र केस के वकील रघुवी दयाल गोयल ने 1942 ई. में बीकानेर राज्य प्रजा परिषद की स्थापना की।

कोटा प्रजामण्डल

कोटा में राष्ट्रीयता के जनक पं. नयनूराम शर्मा माने जाते है।

पं. नयनूराम शर्मा ने कोटा में 1934 ई. में हाड़ौती प्रजामण्डल की तथा वर्ष 1939 ई. में अभिन्न हरि के सहयोग से कोटा प्रजामण्डल की स्थापना की।

भरतपुर प्रजामण्डल

भरतपुर में 1912 ई. में हिन्दी साहित्य समिति की स्थापना के समय से जन-जागृति की वास्तविक शुरूआत हुई। समिति के संस्थापकों में प्रमुख महंत जगन्नाथ अधिकारी  ने 1920 ई. में दिल्ली में वैभव नामक समाचार पत्र प्रकाशित किया। इन्हीं दिनों भरतपुर में शुद्धी आंदोलन भी चला। 1937 ई. में जगन्नाथ कक्कड़ ने कुछ सहयोगियों के साथ भरतपुर कांग्रेस मण्डल की स्थापना की।

गोपीलाल यादव की अध्यक्षता में 1938 ई. में भरतपुर प्रजामण्डल की स्थापना की गई।

प्रजामण्डल का जनता के सामाजिक- आर्थिक उत्थान मे योगदान

राजस्थान मे विभिन्न  रियासतों मे उत्तरदायी शासन की स्थापना, मौलिक अध्किरों की चेतना जागृति करने, रियासतों में बुराईयों के अंत के लिए प्रजामण्डल संगठनों की स्थापना हुई। इनके योगदान को निम्न बिंदुवार समझा जा सकता है-

सामाजिक उत्थान

शिक्षा का प्रसार हुआ।

सामाजिक समरसता बढ़ी।

राजनैतिक चेतना का विकास हुआ।

शिक्षा के स्तर मे  वृद्धि  हुई।

छुआछूत की भावना कम हुई।

सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार किया गया।

अध्किरो के प्रति जागरूकता आयी।

देश के अन्य भागों के प्रति जुड़ाव उत्पन्न  हुआ।

स्वतंत्रता आंदोलन मे सहभागिता बढ़ी।

रचनात्मक कार्य प्रारंभ हुए यथा बीकानेर मे कन्हैयालाल व स्वामी गोपालदास ने पुत्र पाठशाला खोली।

आर्थिक उत्थान

किसानों की लाग-बाग एवं बेगार के कमी।

मेवाड़ में 84 प्रकार की लाग-बागे ली जाती थी यथा तलवार बंधई, चवरी कर, उन पर रोक लगी।

किसानों को भूमि मालिकाना हक मिला।

अकाल राहत कार्य प्रारंभ हुए

स्वतंत्रता आंदोलन सम्बन्धी अन्य तथ्य

सिरोही लोक परिषद की स्थापना मुम्बई में 1933 ई. में बीकानेर लोक परिषद की स्थापना कलकत्ता में 1936 ईमें तथा जैसलमेर प्रजामण्डल की स्थापना जोध्पुर में 1945 ई. में की गई।

1907 ई. में पं. कन्हैयालाल ढूंढ और उनके शिष्य स्वामी गोपालदास ने चुरू में शिक्षा हेतु पुत्र पाठशाला और अछूतों की शिक्षा के लिए कबीर पाठशाला की स्थापना की।

राजपूताना मध्य भारत सभा की स्थापना 1918 में दिल्ली में कांग्रेस अध्विशन के साथ हुई। विजयसिंह पथिक, चांदकरण शारदा, गणेश शंकर विद्यार्थी द्वारा स्थापित इस सभा के दिल्ली में हुए प्रथम अध्विशन की अध्यक्षता पंडित गिरधर शर्मा ने की। प्रथम सभापति जमनालाल बजाज चुने गये।

दिसम्बर,1919 में राजपूताना मध्य भारत सभा का दूसरा अध्विशन अमृतसर हुआ।

 श्री जमनालाल बजाज की अध्यक्षता में 1920 ई. में अजमेर में राजपूताना मध्य भारत सभा का तीसरा अधिवेशन  हुआ।

1919 में वर्ध में राजस्थान सेवा संघ की स्थापना हुई। इसे 1920 ई. में अर्जुनलाल सेठी, केसरीसिंह बारहठ तथा विजयसिंह पथिक अजमेर ले आये।

अजमेर के निकट हटूंडी में हरिभाऊ उपाध्याय द्वारा गांध्ी आश्रम की स्थापना की गई।

1927 ई. में जयुपर में सेठ जमनालाल बजाज ने चरखा संघ की स्थापना की।

राजस्थान में छात्र समुदाय द्वारा स्वतंत्रता आंदोलन का सूत्रपात सर्वप्रथम अजमेर में हुआ।

हिन्दी भाषा को राजभाषा बनाने के लिए जयपुर राज्य में 1922 ई. में एक आंदोलन चला।

 हीरालाल शास्त्रा द्वारा 1929 में वनस्थली (टोंक) में जीवन कुटीर नामक संस्था की स्थापना की गई जो वर्तमान में वनस्थली विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है।

1931 ई. में अलवर के भवानीसहाय शर्मा हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी नामक क्रांतिकारी संगठन के प्रमुख नेता के रूप में सामने आये।

छगनराज चौपासनीवाला ने जोध्पुर में 26 जनवरी, 1932 को स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में राष्ट्रीय झण्डा पफहराया।

श्याम जी कृष्ण वर्मा ने दामोदर व्यास के सहयोग से ब्यावर में कृष्णा कपड़ा मिल की स्थापना कीं

अजमेर में मेयो कॉलेज में प्रवेश पाने वाले प्रथम छात्र अलवर नरेश मंगल सिंह थे।

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